देश की शीर्ष अदालत ने उस याचिका को ख़ारिज कर दिया है जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जांच एसआईटी से कराने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इसकी जांच की जरुरत नहीं है। जिन मामलों में घोटाले की आशंका है, उसमें कानूनी रास्ता अपनाया जा सकता है। बावजूद इसके अगर समाधान नहीं होता है तो कोर्ट जाया जा सकता है।
कॉमन कॉज और सीपीआईएल नामक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक चंदे के रूप में रिश्वत की बात कही थी। चंदे के रूप में करोड़ों रुपए के घोटाले का दावा किया था और पूरे मामले की जांच एसआईटी से कराने की मांग की थी। इस याचिका पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को सुनवाई की और कहा कि फिलहाल इस मामले में एसआईटी जांच की जरुरत नहीं हैं।
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि हमसे कंपनियों और राजनीतिक दलों के खिलाफ जांच के लिए एसआईटी बनाने की मांग की गई। वकीलों ने कोर्ट के पिछले आदेश के बाद सार्वजनिक हुए इलेक्टोरल बॉन्ड के आंकड़ों में पार्टियों के जरिए सरकार से अधिक फायदा लेने के लिए कंपनियों द्वारा चंदा देने की बात सामने आई। वकीलों का कहना बै कि एसआईटी बनाना जरूरी है क्योंकि सरकारी एजेंसियां कुछ नहीं करेंगी।
सीजेआई ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की खरीद संसद के बनाए कानून के तहत हुई। उसी कानून के आधार पर तमाम राजनीतिक दलों को चंदा मिला लेकिन यह कानून अब रद्द किया जा चुका है। याचिकाकर्ताओं का मानना है कि सरकारी एजेंसियां जांच नहीं कर पाएंगी। हमने याचिकाकर्ता से कहा है कि यह आपकी धारणा हो सकती है। अभी ऐसा नहीं लगता है कि कोर्ट सीधे जांच करनावा शुरू कर दे।
जिन मामलों मे किसी को शंका है तो वह कानून का रास्ता ले सकते हैं, बावजूद इसके समाधान नही होने पर वह कोर्ट जा सकते हैं। मौजूदा हालात में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जांच करवाना जल्दबाजी होगी। याचिकाकर्ता दूसरे कानूनी विकल्प को अपना सकते हैं। कानूनी विकल्पों के उपलब्ध करते सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करना ठीक नहीं। एसआईटी गठन की अभी कोई जरुरत नहीं है।