चंद्रयान-3 ISRO से कैसे बात करता है और दैनिक सूचना कैसे देता है?

चंद्रयान-3 ISRO से कैसे बात करता है और दैनिक सूचना कैसे देता है?

चंद्रयान-3 ISRO से कैसे बात करता है और दैनिक सूचना कैसे देता है?

अब चंद्रयान-3 चांद के करीब है, हमारा चंद्रयान अब चांद की उस अंडाकार ऑर्बिट में है, जो चांद की सतह से महज 174 X 1437 किमी दूर है. यह धरती से 3 लाख 84 हजार 400 किमी की दूरी तय कर चंदा मामा के घर जाने के लिए निकला था। आसान शब्दों में, चांद की सबसे कम दूरी 174 किमी और सबसे अधिक दूरी 1437 किमी है।

14 अगस्त तक चांद इसी ऑर्बिट में रहेगा, फिर अगली ऑर्बिट में जाएगा. 17 अगस्त को वह अपनी अंतिम जगह, 30 X 100 किमी की दूरी पर स्थित ऑर्बिट में पहुंच जाएगा। चंद्रयान-3 पर इसरो के वैज्ञानिक पूरी तरह से निगरानी रखते हैं, साथ ही यह लगातार इसरो से बातचीत करता रहता है और धीरे-धीरे जानकारी साझा करता रहता है।

इसरो चंद्रयान-3 पर कैसे निगरानी रखता है? धरती से चांद की दूरी 3 लाख 84 हजार 400 किमी है, जो समय के हिसाब से घटती-बढ़ती रहती है, लेकिन आपने कभी सोचा है कि इसरो लाखों किलोमीटर दूर से भी चंद्रयान-3 पर लगातार नज़र रखता है? वास्तव में, इसरो टेलिमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (ISTRAC) इसका कार्य करता है। यह बेंगलुरु में स्थित नेटवर्क इसरो की गति, दिशा और सेहत को देखता है। इस तरह चंद्रयान-3 इसरो से बातचीत करता है

सिर्फ इसरो ही चंद्रयान-3 पर नज़र नहीं रख सकता, बल्कि चंद्रयान-3 इसरो से बात कर सकता है जब चाहे। 17 अगस्त को, प्रोप्ल्शन मॉड्यूल, जो अभी चंद्रयान-3 के साथ चांद की ऑर्बिट में घूम रहा है, लैंडर और रोवर से अलग हो जाएगा। 23 अगस्त को लैंडर सॉफ्ट चांद पर उतरेगा। लैंडर के माध्यम से रोवर चांद की सतह से जानकारी लेकर प्रोप्ल्शन मॉड्यूल तक भेजेगा।

चांद से जुटाई गई तस्वीरों और तथ्यों को प्रोप्ल्शन मॉड्यूल सिग्नल के माध्यम से भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क तक भेजेगा। ब्यालालू इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क का मुख्यालय कर्नाटक के रामनगर जिले में है। चंद्रयान-3 के सिग्नलों को यह IDSN ही डीकोड करेगा। इस पूरी प्रक्रिया को टेलिमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (ISTRAC) कहते हैं।

अगर प्रोप्लशन मॉड्यूल असफल रहा तो , चंद्रयान-3 आसानी से सिग्नल इसरो तक भेज सकेगा अगर प्रोप्लशन मॉड्यूल किसी भी कारण से ठीक तरह काम नहीं कर पाया। ऑर्बिटर इसका माध्यम बनेगा। चंद्रयान-2 में इसी ऑर्बिटर को भेजा गया था। चांद की ऑर्बिट में अभी भी यह ऑर्बिटर घूम रहा है। 2019 में चंद्रयान-2 की लांचिंग के समय इसे एक साल तक काम करने के लिए भेजा गया था, लेकिन इसमें इतना ईंधन बचा है कि यह 2026 तक काम कर सकता है।

 

Reported by Lucky Kumari

 

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