भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बिहार जाति जनगणना मामले पर फिलहाल कोई रोक नहीं लगाने का फैसला किया है.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि डेटा गैरकानूनी तरीके से हासिल किया गया है. जवाब में, अदालत ने कहा कि वे वर्तमान स्थिति को बनाए रखने के लिए कोई निषेध या आदेश जारी नहीं करेंगे।

जातीय जनगणना को लेकर बिहार सरकार को सकारात्मक खबर मिली है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी राज्य के काम को रोकना उचित नहीं है और सरकारों को नीतिगत मामलों पर निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। बिहार सरकार ने हाल ही में जनगणना के आधार पर जातिगत आंकड़े जारी किए थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में चुनौती दी गई थी.

सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि गैर-कानूनी तरीके से डेटा जमा किया गया है. इसपर कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम किसी भी तरह की रोक या यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश नहीं देने जा रहे हैं. नीतिगत मामलों पर सरकार को रोकना गलत होगा. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से चार हफ्तों में जवाब जरूर मांगा है. सुप्रीम कोर्ट अब  करेगा.

इस सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि HC का आदेश बहुत विस्तृत है कि पॉलिसी के लिए डेटा क्यों जरूरी है. आकंड़े अब सार्वजनिक हो चुके है.ऐसे में अब आप हमसे क्या चाहते हैं? इसपर याचिककर्ताओं के वकील ने कहा कि SC के रुख का इतंज़ार किए बगैर आंकड़े जारी कर दिए गए. जस्टिस खन्ना कहा कि इस पर कुछ विचार करने की आवश्यकता होगी. हाई कोर्ट का फैसला काफी विस्तृत है. सभी नीतियां डेटा पर आगे बढ़ती हैं. कोर्ट ने कहा कि लेकिन हमें यह तय करना होगा कि किस हद तक कितना ब्रेकअप सार्वजनिक किया जा सकता है. या क्या हम यह सब तय कर सकते हैं और यह काम किसी और को सौंप सकते हैं.

जस्टिस खन्ना ने कुछ डेटा के प्रकाशन को लेकर बिहार सरकार से सवाल किया है. सुनवाई के दौरान उन्होंने पूछा कि सरकार ने डेटा प्रकाशित करने का विकल्प क्यों चुना। जवाब में, बिहार सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि इस प्रश्न के समाधान के लिए और अधिक विश्लेषण और काम की आवश्यकता होगी

 

 

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