सबके कष्ट हरने वाली गंगा क्या स्वयं है कष्ट में ?

गंगा को भारत में माता का स्थान दिया हुआ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भगीरथ ने गंगा को धरती पर आ कर उनके पूर्वजों को मोक्ष देने का वरदान प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी । यही कारण है की आज भी गंगा को मोक्षदायिनी गंगा के नाम से जाना जाता है जिसके जल में सभी पापों को धो देने की शक्ति है।

पटना भी उसी गंगा माँ के किनारे बसा हुआ शहर है। जो सालों से गंगा के प्रवाह के कारण सुख, समृद्धि और सामान्य जीवन जी रहा है। परन्तु आज एक ऐसा भी समय आ गया है जहाँ पटना में गंगा को सिमटते हुए देखा जा रहा है। लोगों का मानना है की गंगा किनारे से दूर भागती जा रही है। पहले के अनुपात में अब गांगेय डॉल्फिंस भी पटना के घाटों पर दिखने बंद हो गए हैं। इसका कारण क्या राजधानी में बढ़ती आबादी है? या दिन प्रतिदिन बढ़ता प्रदुषण ? या फिर इसका कारण हम लगातार बढ़ते विकास के स्टार को मान सकते हैं जो की हमें सुविधाएं तो अवश्य दे रहा परन्तु साथ ही साथ हमें प्रकृति से दूर बहुत दूर कर रहा।

हाल में ही आयी एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली का प्रदुषण इतना बढ़ चूका की सांस लेने में भी तकलीफ हो रही। ऐसे में क्या हम पटना के भविष्य के बारे में भी ऐसा ही सोच सकते हैं? इसपर जब हमने विशेषज्ञ विश्लेषण किया तो कुछ बातें जो हमारी समझ में आयी वो ये थी की की सबसे पहले तो विकास की ज़रूरत सभी को है। बिना विकासशील उपकरणों के हमारा जीवन अब दुष्कर हो जायेगा परन्तु प्रकृति का ध्यान देना भी बहुत आवश्यक है। भले ही गंगा पाथवे बनने से लोगों को राहत पहुंची है, मरीज़ों के इलाज में आसानी हो रही है लेकिन इसका सीधा असर गंगा के प्रवाह और जलजीवन पर देखा जा सकता है।

 

 

जब हम बात करते हैं गंगा की उपजाउ ज़मीन की जो हम सभी का पेटजब हम बात करते हैं गंगा की उपजाउ ज़मीन की जो हम सभी का पेट भरती है, उसमे भी प्रदुषण के निशान दिखने लगे हैं।

दूसरी बात, हमलोगों ने उसका नाम गंगा पाथवे क बजाये मरीन ड्राइव रख दिया है जिससे हम खुद ही उपहास के पात्र बनते जा रहे और राज्यों तथा देखों के लिए। बिना खारे पानी के मरीन कैसे ? इसलिए हमें उसे हमें गंगा पाथवे कह कर ही सम्बोधित करना चाहिए। साथ ही उसपर बढ़ रहे ट्रैफिक को की स्ट्रीट फूड्स के स्टाल्स की वजह से लग रही उसका भी ध्यान रखना ज़रूरी है वर्ण तो उस सड़क का महत्त्व ही ख़त्म हो जायेगा।

तीसरी और सबसे अहम् बात यह है की एक सड़क को पर्यटन स्थल बनाने की जगह अगर गंगा घाटों की सुंदरता बढ़ाने का, गंगा आरती का तथा गंगा को ही एक पर्यटन क्षेत्र में बदलने का सोचें तो वो हमारे बिहार को और ज़्यादा गौरवान्वित करेगा। लेकिन उससे भी पहले हमें तीन चीजों का ख्याल रखना होगा – सुरक्षा,सुगमता एवं सौंदर्यीकरण। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए की कोई लड़की भी रात को गंगा आरती के बाद भी घाटों पर सुरक्षा को लेकर भय में ना रहे, सुगमता ऐसी की लोगों को वहां पहुंचते हुए किसी भी परेशानी का सामना न करना पड़े, और सौंदर्य ऐसा की देश विदेश से भी लोग अपनी ख़ुशी से यहां आएं और भावविभोर हो जाएं।

अगर इन चीज़ों को साकार करने में हम कामक्याब होते है तब हम असल रूप में एक प्रगतिशील राज्य कहलायेंगे तथा प्रकृति और प्रगति के बीच संतुलन बना पाएंगे।


Article by ANANYA SAHAY 

सबके कष्ट हरने वाली गंगा क्या स्वयं है कष्ट में ?