9 नवंबर को बिहार विधानमंडल से अनुसूचित जाति,जनजाति, पिछड़ा और अतिपिछड़ा आरक्षण बिल 2023 को पारित किया गया था। इसके तहत एससी, एसटी, ओबीसी और ईबीसी के आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दी गई है। ईडब्लूएस का 10 फीसदी आरक्षण अलग से है। राज्य में आरक्षण का दायरा 75 फीसदी पहुंच गया है। इसके बाद इसको लेकर पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। पिछले महीने की पहली तारीख को सुनवाई हुई थी और हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक महीने से अधिक दिनों का समय देकर इस मसले पर जवाब देने को कहा था। अब डेट खत्म हो गया है, लिहाजा इस मामले में आज पटना हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है।
सीएम नीतीश कुमार ने 7 नवंबर को विधानसभा में इसकी घोषणा की थी की राज्य के अंदर आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाएगा। उसी दिन हाउस के बाद उसी दिन कैबिनेट की मीटिंग बुलाई गई और ढाई घंटे की बैठक में इस प्रस्ताव को पास किया गया था। इसके बाद शीतकालीन सत्र के चौथे दिन 9 नवंबर को विधानमंडल के दोनों सदनों से पारित कर दिया गया था। फिर राज्यपाल के पास बिल को भेज दिया गया था। राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद नए आरक्षण बिल लागू कर दिया गया। कुछ दिनों के बाद इसको लेकर पटना हाईकोर्ट में इस मामले में याचिका दायर की गई। पिछले महीने 1 दिसंबर को सुनवाई हुई और अब आज इस मामले की अगली सुनवाई है।
इस मामले में सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस की बेंच ने राज्य सरकार को 12 जनवरी तक जवाब देने को कहा था। याचिकाकर्ता की ओर से रोक लगाने वाली मांग को बेंच ने रिजेक्ट कर दिया गया था। याचिकाकर्ता के तरफ से नए आरक्षण बिल को गैर संवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की गई थी। जिस पर चीफ जस्टिस ने सुनवाई करते हुए कहा था कि फिलहाल इस बिल पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।
अदालत ने बिहार सरकार से अपना पक्ष रखते के लिए जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर कहा गया था कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि राज्य सरकार ने जाति आधारित गणना की। इसके आधार पर आरक्षण का दायरा बढ़ाया, जबकि सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर बढ़ाना चाहिए था।
बिहार में आरक्षण की नई नीति पर आज हाईकोर्ट में सुनवाई होगी। इस दौरान राज्य सरकार अपना पक्ष रखेगी। चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रण की बेंच में सुनवाई होनी है। जहां महाधिवक्ता पीके शाही राज्य सरकार का पक्ष रखेंगे। इस नए बिल के तहत अनुसूचित जनजाति को 2 प्रतिशत, अति पिछड़ी जाति को 25 प्रतिशत और पिछड़ा वर्ग को 18 प्रतिशत आरक्षण मिल सकेगा। वहीं, केंद्र की ओर से सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को पहले की तरह 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान लागू रहेगा। सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थानों में पिछड़े और दलित और महादलित लोगों को इसका लाभ मिलेगा।