मकर संक्रांति में होती सूर्य की पूजा और उससे जुडी मान्यताएं

आज मकर संक्रांति है। ये पर्व सूर्य के मकर राशि में आने पर मनाया जाता है। दक्षिणायन समाप्त हो जाएगा और अब 6 महीनों तक सूर्य उत्तरायण रहेगा। ठंड कम होगी, गर्मी बढ़ेगी। दिन बड़े और रातें छोटी होने लगेंगी। शास्त्रों में बताया है कि मकर संक्रांति से देवताओं के दिन की शुरुआत होती है। इस दिन कई शहरों में पतंग उड़ाई जाती है।

मकर संक्रांति सूर्य की स्थिति के आधार पर मनाया जाने वाला पर्व है। बाकी पर्व चंद्र की स्थिति के आधार पर मनाए जाते हैं। इस दिन सूर्य पूजा के साथ ही तिल, कंबल, मच्छरदानी, खिचड़ी, गुड़ का दान करने की परंपरा है। दान-पुण्य, पूजा-पाठ और तीर्थ दर्शन कर सकते हैं। इस त्योहार से जुड़ी कई मान्यता हैं।

1.जब सूर्य देव शनि की राशि मकर में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य और शनि पिता-पुत्र हैं। शनि अपने पिता सूर्य को शत्रु मानता है, लेकिन मान्यता ये है कि मकर संक्रांति पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर जाते हैं। पहली बार जब सूर्य शनि के घर गए थे, तब इनके बीच के मतभेद दूर हो गए थे।

2.मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में देवताओं के दिन की शुरुआत माना जाता है। महाभारत युद्ध के बाद भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपने प्राण त्यागे थे। उस समय माना जाता था कि मकर संक्रांति पर मरने वाले लोगों को मोक्ष मिल जाता है। मोक्ष यानी आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता है।

3. सूर्य के मकर राशि में आने से खरमास खत्म हो जाता है और मांगलिक कार्यों के लिए फिर से शुभ मुहूर्त मिलने लगते हैं। खरमास में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ जैसे मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं, लेकिन मकर संक्रांति के बाद फिर से शुरू हो जाएंगे।

4. राजा भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष नहीं मिला था। पूर्वजों के मोक्ष के लिए देवी गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाना था। देवी गंगा को धरती पर लाने का काम राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से किया था। देवी गंगा धरती पर आईं तो मकर संक्रांति पर भागीरथ के पूर्वजों की अस्थियों से गंगा जल स्पर्श हुआ था और सभी पूर्वजों को मोक्ष मिल गया था। इस वजह से मकर संक्रांति पर गंगा नदी में स्नान करने की परंपरा है।

मकर संक्रांति में होती सूर्य की पूजा और उससे जुडी मान्यताएं