गोकुल जलाशय में बनेगा बिहार की पहली बर्ड सेंन्चुरी…

 

गोकुल जलाशय में बनेगा बिहार की पहली बर्ड सेंन्चुरी…

35किलोमिटर के क्षेत्र में फैला है जलाशय..

लाखों की संख्या में आते है साईबेरियन पक्षी…तीन महिने करते है प्रवास..

रामश्रय प्रोजेक्ट के तहत होगा विकास…

बक्सर से कपीन्द्र किशोर की रिपोर्ट…

13/11/2021

 

बक्सर । डुमरांव अनुमंडल क्षेत्र के गोकुल जलाशय बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार का बहुत बड़ा माध्यम बन सकता है, यहां मत्स्य पालन के साथ ही पर्यटन की असीम संभावना है। अनुमंडल क्षेत्र के चक्की और बरहमपुर प्रखंड के 20 किलोमीटर के दायरे में फैले गोकुल जलाशय को सरकार चाहे तो रोजगार के बड़े केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।
लोग बताते है कि मछलियों का प्रजनन इस जलाशय में और बेहतर ढंग से हो सकता है। प्रकृति के साथ लगातार हो रहे खिलवाड़ और ग्लोबल वार्मिंग के असर से इस जलाशय पर भी खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों से हुई बातचीत से पता चला है कि 70 वर्ष पूर्व गंगा की मुख्यधारा यहीं से होकर बहती थी। कालांतर में गंगा नदी ने अपना रास्ता बदल लिया इस छाड़न को अब लोग भागड़ के नाम से जानते है। चक्की से लेकर नैनीजोर तक लगभग 35 किमी के दायरे में यह जलाश में फैला हुआ है। दियारा क्षेत्र के लोगों के लिए इस जगह से का महत्व गंगा नदी के समान ही हैं। इस बारे में जानकार लोगों का कहना है कि 1952 53 में गंगा नदी अपनी धारा की मोड़ कर यहां से लगभग 8 किलोमीटर उत्तर दिशा जवही दियारा के उस पार चली गई थी। तब वह अपनी निशानी के तौर पर एक उप धारा छोड़ गई। इसे ही लोग आज गंगा नदी का भागड़ या गोकुल जलाशय के नाम से जानते हैं। गंगा नदी की धारा गायघाट,सपही,दल्लुपुर, चंद्रपुरा उधूरा,महुआर होते हुए नैनीजोर तक पहुंचती है। इस जलाशय से किसान सिंचाई का कार्य तो करते ही हैं, सैकड़ों मछुआरे मछली मार कर अपने परिवार का भरण पोषण भी करते हैं। इसके अलावा दियारे में चरने के लिए जाने वाले पशुओं सहित उस क्षेत्र में निवास करने वाले नीलगाय व हिरणों की प्यास बुझाने और उन्हें आश्रय देने का यही एकमात्र जलाशय है। लेकिन गर्मी के दिनों में कई जगहों पर यह जलाशय कम पानी के चलते सूखने की कगार पर पहुंच जाता है। क्षेत्र के जानकार लोग बताते हैं कि इस जलाशय के अस्तित्व को बचाने के लिए तत्काल नहीं नहीं जोर के पास गंगा नदी में फीस गेट लगाना जरूरी है नहीं तो गंगा का वरदान या अनमोल धरोहर इतिहास के पन्नों में में सिमट कर रह जाएगा। लेकिन डीएमके पहल के बाद एक बार फिर इसके विकास को लेकर आशा की एक नई किरण जगी है। देखना अब यह है कि भविष्य में यह पहल कितना सार्थक साबित होता है।

ब्रह्मपुर। क्षेत्र के बलुआ गांव निवासी सामाजिक कार्यकर्ता शिवजी सिंह गोकुल जलाशय का जीर्णोद्धार कराने के साथ ही उसको पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने तथा उसमें मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र खोलने को लेकर पिछले दो दशक से संघर्ष करते आ रहे हैं। इसके लिए उनके द्वारा क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने बताया कि वर्ष 2008 में इस जलाशय के विकास के लिए 3 करोड़ 71 लाख का प्राक्कलन तैयार कर उसे निदेशक मत्स्य विभाग पटना व जिला प्रशासन को जिला मत्स्य पदाधिकारी द्वारा उपलब्ध कराया गया था। लेकिन 12 वर्षों के बाद भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उसके लिए बनाया गया पौने चार करोड़ का प्राक्कलन फाइलों में ही सिमट कर रह गया। इसका नतीजा यह है कि यह है कि यह जलाशय आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। लोग बताते हैं कि जनप्रतिनिधि व अधिकारियों की उदासीनता व उपेक्षा पूर्ण नीति के चलते अभी तक इस जलाशय का विकास हकीकत में नहीं बदल सका है।

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