पटना में भारतीय भाषाओं के संरक्षण पर ऐतिहासिक सम्मेलन

पटना में भारतीय भाषाओं के संरक्षण पर ऐतिहासिक सम्मेलन

पटना में भारतीय भाषाओं के संरक्षण पर ऐतिहासिक सम्मेलन
हिंदी-उर्दू अकादमी बिहार शाखा के गठन के लिए चार संयोजक नियुक्त

पटना (विशेष संवाददाता)

हिंदी-उर्दू अकादमी के तत्वावधान में 27 अप्रैल 2025, रविवार को बिहार चेम्बर ऑफ कॉमर्स के भव्य सभागार में “भारतीय भाषाओं का संरक्षण: उर्दू, हिंदी, संस्कृत और अन्य प्रांतीय भाषाओं का भविष्य” विषय पर एक भव्य और ऐतिहासिक राज्य स्तरीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस उद्देश्यपूर्ण और दूरदर्शी बैठक में देशभर से नामचीन साहित्यकारों, शोधकर्ताओं, पत्रकारों और भाषाविदों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और अस्तित्व की रक्षा के लिए ठोस और दीर्घकालिक रणनीति तैयार करना था।

सम्मेलन की अध्यक्षता प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकारों के पैरोकार और कायदे-उर्दू जनाब शमीम अहमद ने की। अपने जोशीले, दूरदर्शी और प्रेरणादायक अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा कि उर्दू मात्र एक भाषा नहीं है, बल्कि भारत की आत्मा, उसकी सांस्कृतिक चेतना और ऐतिहासिक धरोहर है। उर्दू ने विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं के बीच सेतु का कार्य किया है और भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को स्थायित्व प्रदान किया है। उर्दू और हिंदी जुड़वां बहनों की तरह हैं, जो सदियों से एक-दूसरे का हाथ थामे इस भूमि की मिट्टी में प्रेम, सहिष्णुता और भाईचारे की खुशबू फैलाती आ रही हैं। आज भाषाओं के अस्तित्व पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हमारी संस्कृति का दीपक बुझ जाएगा। उन्होंने सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और आम जनता से अपील की कि भाषाओं के संरक्षण को मात्र औपचारिकता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय कर्तव्य समझा जाए, क्योंकि भाषाओं का संरक्षण वास्तव में अपनी संस्कृति, इतिहास और राष्ट्रीय पहचान का संरक्षण है।

कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कवि और साहित्यिक हस्ती सैयद अफीफ सिराज ने किया, जिन्होंने अपनी शिष्ट, सहज और सजीव शैली से पूरे सम्मेलन को गरिमा और आकर्षण के साथ जोड़े रखा। उनकी चुस्त-दुरुस्त और मंत्रमुग्ध कर देने वाली मंच संचालन शैली ने श्रोताओं को अंत तक बांधे रखा और आयोजन की गरिमा को और भी ऊंचा किया।

सम्मेलन में विशिष्ट अतिथि के रूप में रोज़नामा क़ौमी तंजीम के मुख्य संपादक एस.एम. अशरफ फ़रीद ने भाग लिया। अपनी प्रभावशाली और भावनापूर्ण तक़रीर में उन्होंने कहा कि भाषा किसी भी क़ौम का केवल अभिव्यक्ति माध्यम नहीं होती, बल्कि उसकी आत्मा और चेतना का दर्पण होती है। उर्दू जैसी भाषा ने एक महान सभ्यता को सींचा है और लाखों दिलों को जोड़कर एक स्वर्णिम अध्याय रचा है। उन्होंने कहा कि उर्दू एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें हिंदी, फ़ारसी, अरबी, तुर्की और स्थानीय बोलियों की खुशबू समाई हुई है। यह भाषा प्रेम की धड़कन और गंगा-जमुनी संस्कृति की शान है। एस.एम. अशरफ फ़रीद ने बल देते हुए कहा कि मातृभाषाओं के प्रसार के लिए शैक्षणिक संस्थानों, मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म्स पर गंभीर और ठोस प्रयास किए जाने चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी जड़ों और पहचान से जुड़ी रहें।

सम्मेलन में कई विद्वानों ने तर्कपूर्ण और दूरदर्शी भाषणों के माध्यम से भाषाओं के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। वक्ताओं में डॉ. मोहम्मद एहसान (बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा), प्रो. डॉ. सैयद आल ज़फ़र (अध्यक्ष, उर्दू विभाग, बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर), प्रो. डॉ. मनोज कुमार (अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर), डॉ. सुशांत कुमार (हिंदी विभाग, बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर), डॉ. सैयद अब्बास शाह (फारसी विभाग, बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर), और डॉ. ग्यानेंद्र कुमार (बीएन मंडल विश्वविद्यालय) शामिल थे। सभी विद्वानों ने एक स्वर में कहा कि भाषाएँ केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर की संरक्षक होती हैं। यदि भाषाएँ समाप्त हो जाती हैं तो सभ्यताएँ भी नष्ट हो जाती हैं।

प्रख्यात शोधकर्ता और लेखक डॉ. क़ासिम ख़ुरशीद ने अपने जोशीले भाषण में कहा कि भाषाएँ मानवीय चेतना और सभ्यता के विकास का आधार हैं। उर्दू जैसी समावेशी भाषा ने भारत के दिलों को प्रेम के धागे में पिरोया है। उन्होंने मातृभाषाओं के संरक्षण हेतु शैक्षणिक पाठ्यक्रम में उनकी अधिक सहभागिता, स्थानीय भाषाओं पर आधारित साहित्यिक मेलों का आयोजन और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर उनके प्रचार की सशक्त सुझाव दिए, जिसने सम्मेलन में मौजूद सभी प्रतिभागियों को गहरे प्रभावित किया।

सम्मेलन में अपने विचार व्यक्त करने वाले अन्य साहित्यकारों में बाबर इमाम, डॉ. अफशां बानो, काज़िम रज़ा, हसन इमाम रिज़वी, फऱोग़ जामी (चकिया), हसन इमाम, काज़िम रिज़वी, अशफाक़ अहमद, हयातुद्दीन, वसीम अख्तर और खालिद हुसैन शामिल थे। सभी ने एकमत से कहा कि भाषाएँ किसी विशेष समुदाय या धर्म की संपत्ति नहीं, बल्कि भारत की साझी सांस्कृतिक विरासत हैं। हमें बिना किसी भेदभाव के अपनी भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

सम्मेलन के अंत में डॉ. अनवारुल हुदा ने अपनी सुंदर और प्रभावशाली भाषा में सभी विशिष्ट अतिथियों, वक्ताओं और श्रोताओं का हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन भारतीय भाषाओं के संरक्षण के मार्ग में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा, जिसके दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे।

इस शुभ अवसर पर हिंदी-उर्दू अकादमी के सचिव डॉ. मोहम्मद फारूक ने बिहार राज्य में अकादमी की गतिविधियों को और सक्रिय बनाने हेतु चार संयोजकों के नामों की घोषणा की: सैयद अफीफ सिराज, डॉ. मोहम्मद एहसान, प्रो. डॉ. मनोज कुमार और डॉ. ग्यानेंद्र कुमार। इन सभी पर यह महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि वे राज्य में हिंदी, उर्दू और अन्य स्थानीय भाषाओं के संवर्धन व संरक्षण के लिए सक्रिय और व्यावहारिक कदम उठाएँ।

सम्मेलन का समापन इस दृढ़ संकल्प और आशावादी वचन के साथ हुआ कि भारत की सभी भाषाएँ अपनी विविधता और सुगंध के साथ भारतीय संस्कृति के उपवन में सदैव बहार बिखेरती रहेंगी और हम सब अपनी सम्पूर्ण बौद्धिक, वैचारिक और व्यावहारिक ऊर्जा इनके संवर्धन हेतु समर्पित करेंगे।

पटना में भारतीय भाषाओं के संरक्षण पर ऐतिहासिक सम्मेलन