नीतीश कुमार की अध्यक्षता में बिहार कैबिनेट ने 75 फीसदी आरक्षण वाले कानून को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने के लिए केंद्र सरकार से मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया है। नीतीश कुमार की कैबिनेट ने बिहार में लागू हुआ 75 फीसदी आरक्षण फॉर्मूले को कहीं अदालत में चुनौती न दी जाए, इसके लिए बड़ी तैयारी कर ली है। बिहार सरकार ने गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में शुक्रवार को हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में आरक्षण के नए प्रावधानों को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। राज्य कैबिनेट ने केंद्र से इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग की है। इसका मतलब साफ़ है की नीतीश कुमार की सरकार इसको लेकर किसी भी तरह के कोई क़ानूनी पचड़ा में नहीं फंसना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में बुधवार को राज्य कैबिनेट की बैठक आयोजित की गई। इसमें कुल 38 एजेंडों पर मुहर लगाई गई। नीतीश कैबिनेट ने बिहार में जातिगत आरक्षण के बढ़े हुए दायरे को 9वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया है। अगर अदालत में नए आरक्षण कानून को चुनौती दी जाए, तो नीतीश सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट से पूर्व में जातिगत आरक्षण की लिमिट 50 फीसदी तक ही सीमित रखने के आदेश हैं। हालांकि कुछ राज्यों में इस लिमिट से ऊपर आरक्षण देने की कोशिश की गई, लेकिन मामला कोर्ट में जाने के बाद उनको अपने फैसलों को वापस लेना पड़ा। ऐसे में अब यह समस्या बिहार पर भी मंडरा रही है।
बताते चलें कि, भारतीय संविधान की 9वीं अनुसूची कई मायने में खास है। इसमें जो कानून शामिल होते हैं, उनकी न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है। यानी कि 9वीं अनुसूची में शामिल कानूनों पर कोर्ट से रिव्यू नहीं हो सकता है। इस अनुसूची में अभी केंद्र और राज्यों के 284 कानून शामिल हैं। इन कानूनों की अदालत से तभी संभव है जब इससे मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल रचना का उल्लंघन होता हो। तमिलनाडु इकलौता राज्य है जहां 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण को कोर्ट से चुनौती नहीं मिल पाई है, क्योंकि उसे नौंवी अनुसूची में डाला गया था।