*भारत को समझने के अमेरिका में स्वामी सहजानंद पढ़ाये जाते हैं – विलियम आर पिंच*
( स्वामी सहजानंद सरस्वती : एक अमेरिकी दृष्टिकोण विषय आयोजित सभा में उमड़ी भीड़.)
बिहटा, 4 नवंबर. श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट, राघवपुर में स्वामी सहजानंद सरस्वती : एक अमेरिकी दृष्टिकोण ” विषय पर अमेरिका के वेस्लेन विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर विलियम आर पिंच ने व्याख्यान दिया. इस अवसर प्र बड़ी संख्या में लोग उन्हें सुनने के लिए इकट्ठा हुए.
स्वागत वक्तव्य ट्रस्ट के सचिव सत्यजीत सिंह ने करते हुए कहा ” यह आश्रम स्वामी सहजानंद सरस्वती के विचारों को आगे बढ़ाने का काम करता रहेगा. विलियम आर पिंच ने इसी दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया है. आज आश्रम उन्हें अपने बीच पाकर गौरवान्वित है. ”
पूर्व सांसद रामेश्वर प्रसाद ने शाल देकर तथा प्रो नवल किशोर चौधरी ने मोमेंटो देकर समानित किया.
कैलाश चंद्र झा ” विलियम आर पिंच पहली बार वालटर हाउज़र के शिष्य के रूप में आये. वालटर हाउज़र के छह छात्रों ओं ने बिहार पर काम किया और किसी न किसी तरह स्वामी सहजानन्द सरस्वती पर कमा किया है. मेरा विलियम पिंच से पारिवारिक व निजी संबंध रहा है . विलियम आर पिंच का जन्म दिल्ली में ही हुआ है i. उनका एक नाम विजय भी है. मैं विजय पिंच को हर सामग्री भेजता हूं जिससे ये वाकिफ रहा करते हैं . विलियम आर पिंच पहले ऐसे व्यक्ति हैं दस्तावेजों के शामिल करने का मौका मिला. जिन्हें पहली बार पता चला.”
वेस्ल्येन विश्वविद्यालय विलियम आर पिंच ने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन करते हुए इस बात की व्याख्या की ” वालटर हाउज़र ने मुझे प्रेरित किया. यहां नागा साधु है जबकि यूरोप में साधु नहीं है. साधु व समप्रदाय भारत में ही क्यों होते हैं, यूरोप में क्यों नहीं ? पुरोहित व महंथ वहां दूर रहते हैं जबकि यहां राजनीति में शामिल रहते हैं. किसान सभा और कांग्रेस के नीचे रामानन्दी सम्प्रदाय और दशनामी संप्रदाय था जिसका अपना मज़बूत नेटवर्क था जो अपने ढंग से काम करता था. किसान सभा ने कांग्रेस को जन आंदोलन बनाया अन्यथा वह एलीट संस्था बनकर रह जाता. स्वामी सहजानन्द वैकल्पिक और स्वालटर्न दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं. स्वामी जी किसान परिवार से आते थे अतः किसान के नजरिये से, नीचे से राजनीति को देखने की कोशिश करते हैंहम लोग अमेरिका में स्वामी सहजानन्द सरस्वती में कैसे पढ़ाते हैं. हमारे विश्वविद्यालय में कोर्स खुद डिजायन करते हैं. हम लोग कोर्स कहते हैं आपलोग पेपर कहते हैं. स्वामी सहजानंद का महत्व क्यों है? इसका उत्तर निर्भर करता है. स्वामी भारतीय लोगों के लिए बहुत ज्यादा है. . मैं दूसरे ढंग का इतिहास्कार हूं. मेरे काम में साधु, स्वामी, अखाड़ा इन सब में काफी दिलचस्पी रही है. अमेरिका में भारत, पकिस्तान, बंगला देश को दक्षिण एशिया के रूप में देखते हैं. 1880 से आज तक जो लौंग टीवीवींटीथ सेंचूरी कहा जाता है. हमलोग प्राथमिक श्रोत, सेकेण्डरी सोर्स का इस्तेमाल करते हैं. यानी इतिहासकारों ने कहा है. दस फ़िल्म, चार किताब सेकेण्डरी सोर्स का काम करता है. फिर स्वामी सहजानंद सरस्वती की किताब से उनके बारे में छात्र सीखते हैं. फ़िल्म , किताब और प्राइमरी सोर्स से समझने की कोशिश करते हैं कि बिहार में स्वामी सहजानंद ने किया किया था. लैंड को कैसे संगठित किया जाता है. परमांनेंट सेटलमेंट और बंगाल तेनेसी एक्ट के बारे में पढ़ाया जाता है. सीपीआई, सीपीम, एम एल मुवमेंट के बारे में भी पढ़ाते हैं. महात्मा गांधी और स्वामी सहजानन्द के बीच जब मुलाक़ात हुई तो क्या हुआ. उनकी आत्मकथा में जाति, समुदाय के बारे में, उनके देवा गाँव के बारे में जो, उनका परिवार जो खेती करता था. हिन्द स्वराज में गांधी ने जाति के बारे में क्या कहा, आम्बेडकर ने क्या कहा जाति के बारे में. नेशन का क्या मतलब है? नेहरू ने गाँव में किसानों से पूछा कि भारत का क्या मतलब है. सावरकर के लिए भारत क्या है क्या भूगोल ही भारत है. स्वामी जी पहले ट्रैकर थे बनारस, मथुरा, बदरी नाथ, तब सब जगह पैदल गए. उनका भारत का अपना अनुभव था. इन सब बातों को हम छात्रों से डिसकस करते हैं. ” विलियम आर पिंच ने आगे कहा ” शिक्षा और भाषा का क्या संबंध है इसका क्या सबंध सहजानंद जी समझते हैं. स्वामी जी बहुत तेज छात्र थे. बे कहा करते कि अंग्रेज़ी पढ़ना एलीट का अहसास कराता है. स्वामी जी अपने शिक्षकों से असंतुष्ट रहा करते थे. स्वामी जी की मौसी को दुख था था कि स्वामी जी ने इतनी जल्दी क्यों सन्यास ग्रहण कर लिया. ”
विलियम आर पिंच ने ‘ मदर इण्डिया’ की चर्चा करते हुए अपने कुछ छात्रों जी स्वामी जी के बारे में राय से अवगत कराया. असली औरत कौन है उसका भारत के इतिहास में कैसे आती हैं. छात्रों की प्रतिक्रिया क्या है. ”
विलियम पिंच ने गांधी , आम्बेडकर और स्वामी जी के गाँव के संबंध के बारे में बताया ” गाँव का इन तीनों के लिए अलग -अलग महत्व था. आम्बेडकर के लिए जाति से बचने का एक भी उपाय है कि शहर में जाएँ. स्वामी जी व गांधी ने एक दूसरे का इस्तेमाल किया स्वामी जी सबसे नीचे के लोगों को लेकर चलने की बात करते थे. बे बहुत ज्यादा की अपेक्षा करते थे. पूंजीवाद और सर्वसत्तावाद दोनों के खिलाफ थे . वे प्रगति की अमूर्त अवधारणा के खिलाफ थे. अमेरिकन विद्यार्थि इन बातों को पढ़ते हैं.”
”
सभा को पूर्व प्रशासनिक पदाधिकारी व्यास जी, प्रख्यात कवि आलोकधन्वा, प्रो रंजीत ने संबोधित किया. धन्यवाद ज्ञापन प्रो एन के चौधरी ने किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता ट्रस्ट के बुजुर्ग सदस्य योगेंद्र प्रसाद सिंह ने किया.
इस कार्यक्रम में पटना, अरवल, गया, आरा सहित कई जगहों से सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे. प्रमुख लोगों में थे पटना कालेज के प्राचार्य रघु नंदन शर्मा, बिहार हेराल्ड के सम्पादक बिद्युतपाल, कांग्रेस के पटना ग्रामीण के नेता आशुतोष शर्मा, एटक के राज्य अध्यक्ष अजय कुमार, सी पी आई के पटना जिला सचिव विश्वजीत कुमार, त्रिपुरारी, जन संस्कृति मंच के सचिव के जीतेन्द्र कुमार, पटना आर्ट कॉलेज के प्राचार्य अजय पांडे पूर्व महालेखागार अरुण कुमार सिंह, अनिल कुमार, सुनील सिंह, अभिषेक कुमार, जौहर, गोपाल शर्मा, रमाकान्त भगत, शिवम, सुशील भारद्वाज, मुन्ना सिंह, रौशन कुमार, डॉ अंकित, बिनेश, रवीन्द्र नाथ राय, निखिल, महेश, किसान नेता ओम प्रकाश शर्मा, सगुनी, भरत, संजेश कुमार, आदि.



