गांवो के गोद में पल रही है परंपरा…
खेत में साग चुनने जाती है महिलाऐं..
खिचड़ी के दिन होता है उत्सव..
कृषि के साथ सभ्यता और परंपरा निभाने का संगम है…सगखोटनी परंपरा
बक्सर से कपीन्द्र किशोर की रिपोर्ट
15/1/2022
भोजपुरी भाषाई क्षेत्र सिर्फ अपनी मिठी भाषाओं के लिऐ नहीं जाना जाता यहां मिलने वाले अनेकों ऐसी परंपराएं हैं जो आज और कहीं नहीं पाई जाती हैं ..सभ्यताओं और संस्कृति के साथ कृषि और परिवेश को जोड़कर होने वाली कई ऐसी सभ्यताऐं हैं जो आज विलुप्त हो रही है ..लेकिन सच कह तो वह आज भी इस भोजपुरी क्षेत्र की पहचान है और आने वाली पीढ़ियों के लिए उन्हें जानना और बताना भी जरुरी है ..आज मकर संक्रांति है और पूरा देश आज कई तरह से इस त्योहार को लोहड़ी पोंगल तथा मकर संक्रांति के रूप में इसे मनाते है लेकिन भोजपुर और बक्सर के इलाके में इस पर्व को कृषि से भी जोड़कर देखा जाता है साल के पहली फसल लगने के बाद जहां घर-घर से स्त्रियां सज सवंर कर खेतों में साग चुनने खेतों में पहुंचती है और पहली फसल का साग लेकर घर आती है जिसे बनाकर खाया जाता है ..उसके लिए उत्सुक महिलाएं और बच्चियां काफी संख्या में खेतों में जाती है और साग चुनती है लोगों ने भी बताया कि यह परंपरा काफी दिनों से चली आ रही है लोग कहते हैं कि लड़कियां घर की लक्ष्मी होती है और उनके द्वारा साग के ले आने पर उसे बनाया जाता है और खाया जाता है जिसे सुख समृद्धि बढ़ती है कहने को कई किदवंतिया है लेकिन तर्क और सत्य यही है कि आज भी भोजपुर और बक्सर जिले के इलाके में कई ऐसी सभ्यताऐं हैं जो सिर्फ भोजपुरी भाषा को ही नहीं ..सभ्यता और संस्कृति से भी समृद्ध है … जिन्हें पहचान नहीं मिल पाई है आज का यह उत्सव थी कुछ ऐसा ही है जो गांव की दहलीज तक सिमट कर रह जाता है और शहरी परिवेश में बदलते में हम विषय नहीं जान पाते लेकिन जरुरी है कि हम इसे जाने और अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी इसके बारे में बताएं ताकि सभ्यता संस्कृति से जुड़ी कृषि की पहचान और कृषि के साथ सभ्यताओं को जीने की जानकारी भी लोगों तक पहुंचे और लोग जान पाए कि आखिर कौन सा उत्सव क्यों मनाया जाता है।