क्षेत्रीय भाषाओं की खराब स्थिति के लिए भाजपा जिम्मेदार- डॉ अजय

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*क्षेत्रीय भाषाओं की खराब स्थिति के लिए भाजपा जिम्मेदार- डॉ अजय*

कांग्रेस कार्यसमिति के स्थायी आमंत्रित सदस्य और जमशेदपुर के पूर्व सांसद,आईपीएस डॉ अजय कुमार ने झारखंड में हो रहे भाषाई मुद्दों पर आज साकची में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रेस कॉन्फ्रेंस डॉ अजय ने बीजेपी को क्षेत्रीय भाषा की बुरी स्थिति का दोषी बताया।

डॉ अजय ने कहा जमशेदपुर के सांसद ने भी भोजपुरी, मगही, मैथली को क्षेत्रीय भाषाओं की सूची से हटाने का समर्थन किया है. ऐसा लगता है कि वह भूल गए हैं कि 2019 के आम चुनावों में कई भोजपुरी, मैथली भाषी मतदाताओं ने भी उन्हें जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 18-19 साल से भाजपा की सरकार थी, और यह कहना दुखद है कि वही भाजपा के लोग जो आज भाषा के मुद्दे पर अपनी राजनीतिक रोटी सेक रहे हैं, उन्होंने स्थानीय क्षेत्रीय भाषा का विस्तार करने के लिए क्या किया? रघुवर दास जो अचानक नींद से जग गए हैं और भोजपुरी-मैथली कर रहे हैं, वो क्या कर रहे थे 2015 से 2019 तक? क्या किया उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं के लिए?

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डॉ अजय इस मुद्दे पर काफी गंभीर दिखे और आगे कहा पिछले साल मैट्रिक की परीक्षा में राज्य के 4.3 लाख छात्र परीक्षा में शामिल हुए थे। जिसमें से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्र केवल 30000 थे और हमारे आदिवासी समुदाय के छात्रों की कम संख्या का कारण केवल भाजपा सरकार है क्योंकि उन्होंने कभी इन जनजाति समुदायों के बच्चों के लिए पर्याप्त शिक्षा सुविधा देने के बारे में कभी नहीं सोचा.

उन्होंने पिछले साल मैट्रिक की परीक्षा में बैठने वाले विभिन्न भाषाओं के छात्रों की संख्या के कुछ आंकड़े दिए. जैसे उड़िया- 296 छात्र,नागपुरी-2261 छात्र, उरांव- 2784, खोरथा- 5013, मुंडारी – 2520, संथाली- 11224, खादिया – केवल 59.

डॉ अजय ने झारखंड सरकार के काम की तारीफ करते हुए कहा कि हेमंत जी, हमारी कांग्रेस पार्टी के साथ झारखंड में समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए अभूतपूर्व काम कर रहे हैं। हम समझते हैं कि झारखंड के स्थानीय निवासी को प्राथमिकता मिलनी चाहिए और झारखंड में कांग्रेस पार्टी इस फैसले का समर्थन करती है लेकिन हमें अपने उन युवाओं के बारे में भी सोचने की जरूरत है जो सरकारी नौकरी पाने के अपने सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात तैयारी कर रहे हैं। सरकार से झारखंड की सामान्य भाषा सूची से हिंदी को वापस लेने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करता हूं क्योंकि पूरे झारखंड में हिंदी भाषी लोग लगभग 21.4 फीसदी हैं।

अंत में डॉ अजय ने कहा इस विवाद की आंच में जो तबका सबसे ज्यादा झुलस रहा हैवह है युवा वर्ग, जिसने राज्य की सरकारी नौकरियों पर वर्षों से टकटकी लगा रखी है। भाषा विवाद के बैरियर में नौकरियों की कई परीक्षाएं अटक गई हैं।
हमें इस भाषा के मुद्दे से बाहर आना होगा और हमारा मकसद अपने राज्य के हर युवाओं को रोजगार देना होना चाहिए और साथ ही हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि गांवों और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले हमारे युवाओं को सरकारी नौकरियों में उचित अवसर मिले।

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