पारस एचएमआरआई में टीएवीआई (TAVI) तकनीक से बदला एओर्टिक वॉल्व
• पारस में टीएवीआई (TAVI) तकनीक से ऐसी दूसरी सर्जरी
• बिना कोई बड़ा चीरा लगाए कैंसर मरीज की सर्जरी से पहले हृदय के सिकुड़ चुके एओर्टिक वॉल्व को बदला
• नहीं करनी पड़ी ओपन हर्ट सर्जरी, जांघ की नस के रास्ते हृदय तक पहुंचे
पटना। पारस एचएमआरआई में टीएवीआई (ट्रांसकेथेटर एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट) तकनीक से बिना ओपन हर्ट सर्जरी किए मरीज के हृदय के सिकुड़ चुके एओर्टिक (महाधमनी) वॉल्व को बदल दिया गया। पारस में इस तकनीक से ऐसी सर्जरी दूसरी बार हुई है तथा राज्य की पहली सर्जरी भी पारस हॉस्पिटल में ही हुई थी, टीएवीआई तकनीक से हुई इस दुर्लभ सर्जरी में कार्डियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. निशांत त्रिपाठी के साथ उनकी टीम में सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अशोक कुमार, डॉ. श्रवण कुमार डॉ. कमलेश कुमार और डॉ. प्रशांत द्विवेदी शामिल थे।
मरीज को गॉल ब्लाडर का कैंसर था जिसका ऑपरेशन पारस एचएमआरआई में होना था। इस ऑपरेशन से पहले जब उसकी कार्डियक फिटनेस जांच की गई तो पता चला कि उसके हृदय के एओर्टिक वॉल्व में गंभीर स्टेनोसिस है। उनका वॉल्व सिकुड़ गया था। इससे उनके हृदय से पूरे शरीर में खून का प्रवाह अवरुद्ध हो गया था। इस स्थिति में उसके गॉल ब्लाडर का ऑपरेशन तब ही हो सकता था जब पहले इस स्टेनोसिस को खत्म किया जाय। आमतौर पर इसके लिए भी ओपन हर्ट सर्जरी का प्रचलन है, लेकिन यहां समस्या यह थी कि ओपेन हर्ट सर्जरी के तुरंत बाद गॉल ब्लाडर का ऑपेशन बहुत मुश्किल काम था। क्योंकि यह काफी गंभीर और जटिल सर्जरी होती है। इसमें काफी दिन हॉस्पिटल में भर्ती रहना पड़ता है। इस ऑपरेशन से रिकवरी में 30 से 45 दिन लग जाते हैं और ऐसे ऑपरेशन में जोखिम भी होता है। ऐसे में डॉ. निशांत त्रिपाठी और उनकी टीम ने टीएवीआई तकनीक से हृदय के सिकुड़ चुके एओर्टिक वॉल्व को बदलने का फैसला किया।
कार्डियोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. निशांत त्रिपाठी ने बताया, “टीएवीआई तकनीक से बिना सर्जरी के एक पतले से तार के जरिए (जिस तरह हार्ट अटैक में खून की धमनियों में स्टेंट लगते हैं वैसे ही) जांघ की नस के रास्ते से हृदय के एओर्टिक वॉल्व में एक स्टेंट के माध्यम से एक नया वॉल्व स्थापित कर दिया गया। टीएवीआई की इस प्रक्रिया में कोई बड़ा चीरा नहीं लगाया गया। मरीज को ज्यादा देर बेहोश भी नहीं करना पड़ा और उसे आईसीयू में भी सिर्फ एक दिन निगरानी के लिए रहने की जरूरत पड़ी।“
इस समस्या के खत्म होने के बाद मरीज के गॉल ब्लाडर के कैंसर का ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन करने वाली टीम को लीड करने वाली डॉ. आकांक्षा वाजपेयी ने बताया, “ऐसे ऑपरेशन में लीवर के हिस्से को गॉल ब्लाडर के साथ निकालना पड़ता है। ऐसे में रक्तस्राव काफी होता है, लेकिन विशेषज्ञों की टीम के कारण इस सर्जरी में रक्तस्राव काफी कम हुआ और मरीज को ब्लड चढ़ाने की भी जरूरत नहीं पड़ी। इस दौरान एनेस्थिसिया के डॉक्टर श्रीनारायण ने यह सावधानी बरती कि बेहोशी के दौरान मरीज के हर्ट पर किसी प्रकार का असर नहीं पड़े।“
पारस अस्पताल के बारे में
पारस एचएमआरआई अस्पताल, पटना बिहार और झारखंड का पहला कॉर्पोरेट अस्पताल है। 350 बिस्तरों वाले पारस एचएमआरआई अस्पताल में एक ही स्थान पर सभी चिकित्सा सुविधाएं हैं। हमारे पास एक आपातकालीन सुविधा, तृतीयक और चतुर्धातुक देखभाल, उच्च योग्य और अनुभवी डॉक्टरों के साथ अत्याधुनिक चिकित्सा केंद्र है। पारस इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर केयर बिहार में अपनी विशेषज्ञता, बुनियादी ढांचे और व्यापक कैंसर देखभाल प्रदान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल के लिए प्रसिद्ध है।
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