“शौर्य”
हो सुलभ जब पथ तुम्हारे,
तब अपना शौर्य मत गाओ तुम
विपदा विपत्ति जब हो जीवन में,
तब अपना लक्ष्य दोहराओ तुम
किंचित मत हो कभी बाधाएं देखकर,
अपना ढाढ़स स्वयं बढ़ाओ तुम
हो सुलभ जब पथ तुम्हारे…
ठहरे हो तुम किस पड़ाव पर,
मंज़िल को मत बांधो आलस के जंजीरों से
विघ्न बाधाएं बहुत है इन हवाओं में,
व्यथा की गथा मत गाओ तुम
है घायल सब लोग यहाँविकट
परिस्थितियों को बसंती स्वर बनाओ तुम
हो सुलभ जब पथ तुम्हारे…
जब अनु हो जन-जन के जीवन में,
तत्पश्चात सत्य शासन को प्रबल करो
धरा,सूरज,हवाएं भी देखो,
बंधा है अनुशासन के डोरों से
है प्रेरणादायक मौसम का बदलना,
बस इन्हीं बातों पर अमल करो
वामन बनकर प्रत्यक्ष रहो,
प्रतिस्पर्धा में अलौकिक रूप दिखलाओ तुम
हो सुलभ जब पथ तुम्हारे…
मैं यह स्वरचित कविता अपने माता पिता और गुरुजनों के “श्री चरणों” में समर्पित करता हूँ।
सुजीत कुमार शर्मा
टेक्निकल एक्सपर्ट
कंप्यूटर साइंस
इंटरनेशनल स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, पटना