महाराष्ट्र में विधानसभा स्पीकर शिवसेना विधायकों की अयोग्यता से जुड़े मामले में सुनाएंगे अपना फैसला

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चुनाव से पहले आज का दिन भाजपा के लिए काफी अहम माना जा रहा है। आज महाराष्ट्र में विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर शिवसेना विधायकों की अयोग्यता से जुड़े मामले में अपना फैसला सुनाएंगे। स्पीकर का ये फैसला बुधवार यानी आज शाम चार बजे आ सकता है। इससे पहले महाराष्ट्र में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भरोसा जताया है कि राज्य में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में चल रही सरकार स्थिर रहेगी।

जून 2022 में शिवसेना में टूट के बाद विधायकों की अयोग्यता को लेकर दोनों गुटों की तरफ से 34 याचिकाएं दायर की गई थीं। इन याचिकाओं को छह हिस्सों में बांटा गया था। इनमें से चार शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और दो शिंदे गुट की हैं। अब महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर के सामने सबसे बड़ा सवाल ये है कि असली शिवसेना कौन सी है? बात ये है कि अगर एकनाथ शिंदे अयोग्य ठहराए जाते हैं, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है और भाजपा सरकार से बाहर हो सकती है।

ठाकरे गुट की ओर से सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने दलीलें दी थीं। उन्होंने संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत एकनाथ शिंदे और बागी विधायक अयोग्य करने की मांग की थी। उन्होंने दलील दी थी कि शिंदे और शिवसेना के 38 विधायक 20 जून 2022 को मुंबई से बाहर चले गए थे। इसके बाद में उन्होंने महाविकास अघाड़ी की सरकार गिराने में बीजेपी की मदद की थी।

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शिंदे गुट की ओर से पेश हुए वकील महेश जेठमलानी ने 2018 में हुए पार्टी चुनाव को फर्जी बताया था। उन्होंने ये भी दलील दी कि 2018 में चुनाव ही नहीं हुए। जेठमलानी ने 2018 का एक पत्र दिखाते हुए कहा था कि इसे चुनाव आयोग के पास भेजा गया था, लेकिन आयोग ने इसका संज्ञान नहीं लिया था। आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि 1999 का संविधान उनके पास आखिरी रिकॉर्ड है।  इसलिए उसके बाद जो हुआ, वो सब गैरकानूनी है।

उन्होंने दलील दी कि चुनाव आयोग ने 2018 के संशोधन का संज्ञान नहीं लिया था और उसी आधार पर फैसला लिया था। स्पीकर भी इसपर विचार कर सकते हैं। जेठमलानी ने एक और दलील देते हुए कहा था कि 2018 के संविधान में शिवसेना अध्यक्ष को पक्षप्रमुख कहा गया है, जबकि 1999 में अध्यक्ष को शिवसेना प्रमुख कहा गया था। इस पर ठाकरे गुट के वकील कामत ने कहा था कि शिवसेना प्रमुख का पद सिर्फ दिवंगत बालासाहेब ठाकरे के पास है। उन्होंने तर्क दिया कि पार्टी अध्यक्ष को कैसे संबोधित किया जाता है, ये जरूरी नहीं है, बल्कि पार्टी अध्यक्ष कौन है, ये ज्यादा जरूरी है।

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