लोकसभा चुनाव में भाजपा को न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि बिहार में भी झटका लगा है। यहां पिछले बार के मुकाबले इस बार एनडीए को 9 सीटों का नुकसान हुआ है। इनमें से अधिकतर सीट मगध और शाहाबाद इलाकों में है। ऐसे में भाजपा की समीक्षा बैठक में हर रोज नई बातें निकलकर सामने आ रही है। पिछले दिनों यह बात है सामने आई की जदयू का वोट भाजपा को नहीं मिला उसके बाद अब यह बात निकल कर सामने आई है कि कुशवाहा समाज के गोलबंदी से राजपूत समाज भाजपा से नाराज हो गया और कोइरी,सवर्ण और पासवान समाज में भी नाराजगी देखने को मिला।
लोकसभा चुनाव में दक्षिण बिहार में बीजेपी को मिली हार पर मंथन हो रहा है और इसमें पार्टी की रिपोर्ट से जो बातें सामने आई है उसमें यह बताया गया है कि आखिकार भाजपा के मूल वोटर इस बार क्यों छिटकने लगे और नुकसान उठाना पड़ा। इसमें कहा गया है कि इस बार भाजपा ने कुशवाहा समाज को साथ लाने की तो भरपूर कोशिश लेकिन उसके इस प्रयास से कोइरी, सवर्ण और पासवान समाज के लोग उनसे दूर हो गए।
पार्टी के रिपोर्ट में कहा गया है कि औरंगाबाद में आरजेडी का कोइरी फैक्टर काम कर गया। इससे काराकाट में पवन सिंह के निर्दलीय लड़ने से राजपूत उनके पक्ष में हो गए और कुशवाहा वोटर एनडीए से छिटककर महागठबंधन में चले गए। असर आसपास की सीटों आरा, बक्सर, सासाराम में भी देखने को मिला। कुछ सवर्ण जातियों और पासवान वोटरों के भी एनडीए से नाराज होने पर बीजेपी एवं जेडीयू को नुकसान हुआ।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बिहार में बीजेपी का वोट शेयर भी घट गया। 2019 में बीजेपी को 24 फीसदी वोट मिले थे और 17 में से 17 सीटें पार्टी ने जीती थी। वहीं, 2024 के चुनाव में बीजेपी को 20.52 फीसदी वोट ही मिले और 12 सीटों पर ही जीत मिल पाई। सहयोगी पार्टी जेडीयू के वोट शेयर में भी पिछले चुनाव के मुकाबले 4 फीसदी की गिरावट आई है। दूसरी ओर आरजेडी ने इस चुनाव में सिर्फ चार सीटें जीतीं, लेकिन 22.14 प्रतिशत वोट शेयर मिला, जो राज्य के सभी राजनीतिक दलों में सबसे अधिक है। लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए को बिहार में 45.52% वोट मिले, जबकि महागठबंधन का वोट शेयर 36.47% रहा।
बीजेपी की आंतरिक रिपोर्ट में दावा है कि बीजेपी ने स्थानीय उम्मीदवारों की अनदेखी कर बाहरियों को टिकट दिया, जिसका असर भी चुनाव नतीजों पर पड़ा। सासाराम में छेदी पासवान की जगह शिवेश राम, जबकि बक्सर में मौजूदा सांसद अश्विनी चौबे का टिकट काटकर मिथिलेश तिवारी को उम्मीदवार बनाया गया। इससे बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का जोश कम हो गया। एनडीए के परंपरागत सवर्ण, कुर्मी, पासवान जैसी जातियों के वोट भी विरोधी उम्मीदवारों के पक्ष में चले गए।