ऊंचे दुकान फीके पकवान
शिव-धनुष की प्रस्तुति ने किया दर्शकों को निराश
आरा,2 मई. नाट्य नगरी आरा में एक लंबे अंतराल के बाद गुरुवार को सर्किल थियेटर इन एजुकेशन फोरम के बैनर तले नाटक शिव-धनुष की प्रस्तुति की गयी. जिसका आयोजन सत्य चैरिटेबल ट्रस्ट ने किया. यह नाटक हाल ही में दिवंगत कवि,साहित्यकार व समाजसेवी पवन श्रीवास्तव और आरा रंगमंच के सशक्त कलाकार व पत्रकार रजनीश त्रिपाठी को समर्पित रहा. कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलित कर मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा नेता गुड्डू बबुआन, सुशील कुमार,हर्ष जैन, सचिन श्रीवास्तव, संजय राय ने संयुक्त रूप से किया. संस्था की ओर से अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्र से किया गया. मंच संचालन अभय विश्वास भट्ट ने किया.
नाटक शिव धनुष शिक्षा पर व्यंग्य करता एक बेहद लोकप्रिय नाटक है जिसे लिखा है रंगकर्मी व निर्देशक मनोज सिंह और धनजंय सिंह ने. बेहद छोटी और दादी माँ के किस्सों की झाँपि में निकली एक कहानी की तरह शिव-धनुष की कहानी भी है. कहानी तब विशेष बन जाती है जब इसकी प्रस्तुति का तरीका उम्दा और दर्शकों से जोड़ने वाली बन जाती है. वह कहानी जो आम जिंदगी सी लगने लगती है तो खास बन जाती है. कुछ ऐसा तानाबाना बुना था निर्देशक मनोज सिंह ने. कहानी शिव धनुष किसने तोड़ा इस सवाल के इर्द-गिर्द घूमती है और यह सवाल स्कूल के बच्चे से लेकर घर की चहारदीवारी, थाने,एस पी ऑफिस, नेता,सांसद और संसद भवन तक पहुंच जाती है. रामायण की की इस कहानी पर सियासत का महाभारत छिड़ जाता है,जाँच बैठ जाती है पर नतीजा ढाक के तीन पात… और अंत में कोर्ट सबूत खोजने के लिए कहता है. दरअसल यह सब फसाद प्रिंसिपल को शिव का धनुष तोड़ने वाले व्यक्ति का नाम भूल जाने के कारण होता है. जो शिक्षा विभाग की पोल खोलता है. जब शिक्षा विभाग उन्हें बुला फटकारता है और नौकरी जाने की बात का हवाला देता है तो अचानक से हे राम! उसके मुख से निकलता है और वे सबूत देने के लिए तैयार होते हैं. नाटक संदेश देता है कि संयुक्त परिवार की देखरेख में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और शिक्षाप्रद कहानियों से बच्चे बहुत कुछ ज्ञान अर्जित करते थे जो अब कहीं खो गया है. दादी,नानी, बुआ,मौसी, चाची जैसे कई रिश्ते अब लुप्त हो गए हैं और ये कहानियों का दौर भी.
लोकधुनों और बच्चों के खेलगीतों को पिरो कर नाटक को संगीत से सुंदर बनाया था राजा बसन्त बाहर ने और शिक्षक की भूमिका में भी अच्छा अभिनय किया. प्राचार्य की भूमिका में पंकज भट्ट, छात्र व नेता बने निशिकांत सोनी, निशांत दीपु, श्याम शर्मिला, लड्डू भोपाली और नीतीश, बाप बने अनिल सिंह और शिक्षा अधिकारी के रोल में मनोज सिंह के अच्छे अभिनय के बाद भी नाटक वह प्रभाव नही छोड़ पाया जो इसके पूर्व की प्रस्तुतियों में दर्शकों ने देखा था. शिव-धनुष की प्रस्तुति ने दर्शकों को निराश कर दिया.
देर से शुरू हुई प्रस्तुति और दर्शकों तक नही गयी आवाज
लंबे अरसे से नाटक के बिना सुना पड़ा नागरी प्रचारिणी सभागार रंगकर्मियों व रँगदर्शकों से नाटक की सूचना पाकर गुलजार हुआ था. निर्धारित समय से पूर्व सुधि दर्शकों ने अपनी सीटें निर्धारित कर ली थी ताकि उन्हें नाटक देखने में कोई कठिनाई न हो, लेकिन निर्धारित समय से डेढ़ घँटे बाद लगभग 7.35 बजे नाटक शुरू हुआ. इस दौरान कई लोग लंबे इंतजार को नही झेल पाए और बैरंग वापस लौट गए. खैर देर ही सही नाटक प्रारम्भ हुआ लेकिन नाटक का प्रारम्भ ही ढीला पड़ गया. ग्रुप वर्क बहुत ही शिथिल सा दिखा जो दर्शा रहा था कि पूर्वाभ्यास की कमी थी. ग्रुप वर्क में एनर्जी गायब दिखा. गाने कर्णप्रिय लगे पर रह-रह कर उसमें भी आपसी सामंजस्य का आभाव महसूस हुआ. गाने के साथ बॉडी लैंग्वेज और कलाकारों का संवाद भी दर्शकों तक पहुंच जाता तो डॉयलाग के पंच सुनाई पड़ते. नागरी प्रचारिणी में दर्शकों तक आवाज न पहुँचना एक टेक्निकल इश्यू जरूर था जिसे पहले से देखना चाहिए था. इसके साथ ही डीजे लाइट पर नाटक के दृश्य वो प्रभाव नही छोड़ पा रहे थे जो स्पॉट और बेबी लाइट देते हैं.
बताते चलें कि देश के कई हिस्सों में शिव-धनुष नाटक के लिए बुलावा आया था और इस नाटक ने कई पुरस्कार बटोरे हैं. भारंगम में बिहार और झारखंड से मनोज सिंह के निर्देशन में इकलौती जाने वाली आरा की इस टीम का प्रदर्शन इतना फीका होगा यह दर्शकों ने नही सोचा. वरिष्ठ रंगकर्मी व पत्रकार शमशाद प्रेम प्रस्तुति से निराश हुए पर मायूस होकर बोले चलिये कुछ हो तो रहा है वही बॉलीवुड कलाकर अक्षर सिंह जो हाल ही में मुंबई से आरा आये थे. उन्होंने नाटक देखने के बाद टेक्निकल पक्ष को ठीक करने की बात कही. रंगकर्मी डब्लू कुमार,चिंटू,अनिल तिवारी दीपू समेत कई रंगकर्मियों और रँगदर्शकों ने नाटक होने की खुशी तो जाहिर की लेकिन अफसोस जाहिर किया कि जिस उम्मीद से आये थे वो नही मिला.



