अफगानिस्तान में तालिबान

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अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो गया है। अफगानी सेना ने घुटने टेक दिए, राष्ट्रपति अशरफ गनी और देश के सुरक्षा सलाहकार देश छोड़कर भाग गए। तालिबान ने सोमवार को घोषित कर दिया कि युद्ध खत्‍म हो चुका है और उसने देश पर कब्‍जा कर लिया है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पूरे देश में अफरा तफरी और दहशत का माहौल है। काबुल के एयर पोर्ट पर अमेरिकी सैनिकों का कब्जा है, अफगानिस्तान के हजारो लोग देश छोड़कर भागने के लिए हवाई अड्डे पर जमा हो गए हैं। जहाजों पर लोग ऐसे चढ़ रहे हैं जैसे किसी सुदूर ग्रामीण इलाके में लोग बस पर चढ़ते हैं। तालिबान की इस दुर्दशा के पीछे किसका हाथ है। अफगानिस्तानी सरकार की भूमिका हो या सोवियत रूस से लेकर अमेरिका तक की भूमिका . सब पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

पश्तो भाषा में तालिबान का अर्थ होता है- छात्र। वर्ष 1994 में यह आतंकी संगठन दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार में पनपने लगा था। यह वो दौर था, जब सोवियत संघ की वापसी के बाद सरकार गिर चुकी थी और गृहयुद्ध की शुरुआत हो चुकी थी।अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जे के लिए चरमपंथी गुटों का संघर्ष जारी था और इन्हीं में से एक था तालिबान।असल में तालिबान मुजाहिदीन लड़ाकों का ही एक समूह है, जिसे 1980 के आसपास सोवियत बलों को खदेड़ने के लिए अमेरिका ने खड़ा किया था। सिर्फ दो वर्षों में तालिबान ने लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा करते हुए वर्ष 1996 में उसे इस्लामिक अमीरात घोषित कर दिया।

यहां यह ध्यान देने योग्य है कि 11 सितंबर, 2001 को अल कायदा ने अमेरिका में हमला कर दिया। अलकायदा के हमले से तिलमिलायाअमेरिका उत्तर दिशा से अफगानिस्तान दाखिल हो गया। जल्दी ही अमेरिकी सेना हवाइ हमलों के जरिए काबुल पहुंच गई। अमेरिकी सैनिकों के आने के बाद तालीबानी आतंकी ग्रामीण इलाकों में छुप गए। तालीबान की नींव डालने वाला सरगना मुल्ला मुहम्मद उमर भी कहीं छिप गयाऔर करीब 20 वर्षो तक अफगानिस्तानी सरकार व पश्चिमी देशों के खिलाफ आतंकी वारदातों को अंजाम देता रहा। बाद में तालिबान के कमजोर पड़ने के साथ ही धीरे-धीरे तालीबान बहुत कमजोर हो गया।

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तालिबान हर हाल में शरिया कानून शरिया कानून लागू करना चहता है। आफगानिस्तान में अपने पांच सालों के शासन काल में तालीबान में शरिया कानून के नाम पर पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए। तालिबानियों का सबसे ज्यादा कहर महिलाओं पर होता है। 12 साल से उपर की लड़कियों के स्कूल जाने या शिक्षा ग्रहण करने पर रोक लगा दी जाती है। यहां तक की महिलाओं और लड़कियों को घर से भी बाहर निकलने में मनाही रहती है। महिलाओं को घर से निकलने की इजाजत तभी होती है जब वे किसी पुरूष सदस्य के साथ हों।

ताबिबानियों के कानून के हिसाब से सार्वजनिक सुनवाई और सजा देना आम बात है। महिलाओं को बेरहमी से पीटना , उनके साथ अन्य अत्याचार तालीबान की पहचान है। तालीबानियों ने पश्चिम फिल्में व किताबों पर प्रतिबंध कर दिया। सांस्कृतिक कलाकृतियों को ईश निंदा का प्रतीक मानते हुए क्रूरता के साथ नष्ट कर दिया गया।
बहरहाल तालिबान का विरोध करने वालों और पश्चिमी देशों का आरोप है कि वह फिर अफगानिस्तान में उसी तरह का शासन कायम करना चाहता है। इस पर तालिबान ने साल की शुरुआत में कहा था कि वह ‘वास्तविक इस्लामिक प्रणाली’ की स्थापना चाहता है, जिसमें महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए प्रविधान होंगे।

हालांकि इस बार आफगानिस्तान की सरकार ने जिस तरह से घुटने टेके उसके लेकर चर्चा यह है कि इस पूरे मामले में अमेरिका,सोवियत रूस और तालिबान सरकार के बीच पहले से कुछ राजनीतिक डील था। इस घटना से सरकार पर से लोगों का भरोसा टूटा है। उधर तालिबानियों ने भी कहा है किसी को डरने की जरूरत नहीं है। महिलाओं को भी पढ़ने और काम करने की छूट मिलेगी और कई पड़ोसी देशों के साथ खासकर भारत के सात रिशेते को लेकर तालीबानी थोड़े लचीले रूख के साथ बात करने को इच्छुक दिक रहे हैं।

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