अब हर माह की 19 तारीख को आयरन फॉलिक एसिड सिरप का किया जाएगा वितरण
– बच्चों को अनीमिया मुक्त रखने के लिए स्वास्थ्य विभाग की विशेष पहल, गृह भ्रमण कर होगा फॉलोअप
– राज्य स्वास्थ्य समीति के कार्यपालक निदेशक ने समेकित बाल विकास विभाग के जारी किया निर्देश
आरा, 19 फरवरी | जिले को एनीमिया मुक्त बनाने के लिये कई अभियान चलाए जा रहे हैं। विशेषकर बच्चों को एनीमिया से बचाने के लिए राज्य स्वास्थ्य समिति के द्वारा समय समय दिशा-निर्देश जारी किए जाते रहते हैं। ताकि, नवजात बच्चों व शिशुओं को एनीमिया से बचाया जा सके। इस क्रम में राज्य स्वास्थ्य समीति के कार्यपालक निदेशक संजय कुमार सिंह ने समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) विभाग को पत्र जारी किया है। जिसमें हर माह जिले के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों पर होने वाले अन्नप्रासन कार्यक्रम में छह माह से लेकर पांच वर्ष से कम के बच्चों को आयरन सिरप पिलाने पर जोर दिया है। इसे छह माह से 59 माह के बच्चों के बीच आशा की उपस्थिति में आंगनबाड़ी सेविका के माध्यम से वितरीत किया जाएगा। इसके साथ-साथ माताओं को भी आयरन सिरप की खुराक देने की विधि की जानकारी एवं महत्व को बताया जाएगा।
बच्चों के विकास को प्रभावित करती है :
जारी पत्र में बताया गया है कि बच्चों में अनीमिया एक गंभीर बीमारी है, जो बच्चों की वृद्धि एवं विकास को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। अनीमिया मुक्त भारत के अंतर्गत स्वास्थ्य विभाग प्रत्येक माह की 19 तारीख को आयरन फॉलिक एसिड (आइएफए) सिरप का वितरण अन्नप्रासन दिवस पर कराया जाएगा। स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा गृहभ्रमण के समय बच्चों के खुराक के वितरण का फॉलोअप भी किया जाएगा, ताकि इसका अच्छा परिणाम बच्चों पर पड़े। जिससे अनीमिया दर में कमी लाना संभव हो पाएगा। अनीमिया मुक्त भारत के अंतर्गत छह से 59 माह के बच्चों के लिए आयरन सिरप की खुराक घर- घर जाकर आशा के माध्यम से वितरण करने का प्रावधान है। अन्नप्राशन दिवस के दिन आयरन फॉलिक एसिड की उपलब्धता स्वास्थ्य विभाग द्वारा आशा के माध्यम से करायी जाएगी।
एनीमिया एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या :
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. केएन सिन्हा ने बताया, छह से 59 माह के बच्चों के बीच रक्तअल्पता या एनीमिया एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। एनीमिया बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में सबसे बड़े अवरोधक का काम करता है। बच्चों में कम आयरनयुक्त आहार का समावेश एवं सेवन तथा अन्य बढ़ती शारीरिक आवश्यकताओं के कारण छोटे बच्चों में एनीमिया से ग्रसित होने की संभावना बढ़ जाती है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019 -20) के अनुसार जिले में 6 से 59 महीने आयुवर्ग के 67.7 प्रतिशत बच्चे रक्तअल्पता के शिकार हैं तथा इसपर तुरंत ध्यान देने की जरुरत है।