पुत्रों के दीर्घायु होने की निभाई जाती हैं परंपरा.. आंचल पर नाच कराने की है परंपरा… संस्कृति और सभ्यताओं को देखने का मौका है पंचकोसी मेला..
Pकराती है आंचल पर लौंडा नाच…
पुत्रों के दीर्घायु होने की निभाई जाती हैं परंपरा..
आंचल पर नाच कराने की है परंपरा…
संस्कृति और सभ्यताओं को देखने का मौका है पंचकोसी मेला..
बक्सर से कपीन्द्र किशोर की रिपोर्ट..
24/11/2021
हमारी संस्कृति और धर्म और हमें बहुत कुछ सीख देते है…जिनके पीछे छिपे तथ्यों को जानना और उस संस्कृति को समझता हमारी जिम्मेदारी है.. बक्सर में आध्यात्मिक रूप से मनाए जाने वाले पंचकोशी मेला का प्रारंभ आज से हो चुका है जिसका पहला पड़ाव अहिरौली के अहिल्या माता मंदिर में होता है… अहिल्या माता मंदिर वह स्थान है जहां प्रभु श्री राम के स्पर्श से के बाद माता अहिल्या पत्थर से मानव हो गई थी …ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या को श्राप मिला था …जिसके बाद वह अपने उद्धार के लिए पत्थर बनकर श्री राम के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी… वही महर्षि विश्वामित्र ने श्री राम और लक्ष्मण को लेकर पांच कोस में बने शिव मंदिरों में जा कर पूजा की थी… अलग अलग जगहों पर अलग अलग प्रसाद ग्रहण किया था …आज अहिरौली मैं पंचकोशी मेला का पहला पड़ाव है और हम बात कर रहे हैं इस पड़ाव के पुरी होने वाली एक बड़ी मान्यता की ….जो कि आज भी देखने को मिलती है सामाजिक परिवेश में चाहे जो बदलाव हो जाऐ…लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जो आज भी परिवार को …समाज को …और रिश्तो को …जोड़े रखने में सहायक होती हैं बक्सर के अहिरौली मंदिर के मान्यता के अनुसार माताएं अपने आंचल पर पुत्रों की दीर्घायु होने के लिए लौंडा नाच कराती है तथा नाच करा कर नर्तकियों को तथा दुआएं देने वालों को दान कर कर अपने पुत्र के दीर्घायु होने की कामना करती हैं… यह परंपरा आज भी चलती आ रही है जहां आज हजारों माताओं ने अपने आंचल पसार कर उस पर लौंडा नाच कराया.. और अपने पुत्रों के लिए दीर्घायु होने की सुख समृद्धि की कामना की ..