सिजेरियन व सामान्य प्रसव में जन्म के एक घंटे के भीतर शिशु को स्तनपान कराना जरूरी

325

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

सिजेरियन व सामान्य प्रसव में जन्म के एक घंटे के भीतर शिशु को स्तनपान कराना जरूरी

- Sponsored -

- sponsored -

- sponsored -

• जन्म के शुरूआती 2 घंटों तक शिशु होते हैं अधिक सक्रिय
• शुरूआती स्तनपान से शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास
आरा, 15 दिसंबर | माताओं का दूध शिशुओं के शरीर को तंदरुस्त तो बनाता ही है, साथ ही उनके मानसिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह बच्चे को रोगों से लड़ने की ताकत प्रदान करने के साथ ही उसे आयुष्मान भी बनाता है। कोरोना ही नहीं बल्कि कई अन्य संक्रामक बीमारियों से मां का दूध बच्चे को पूरी तरह से महफूज बनाता है। जन्म के शुरूआती 2 घंटों तक शिशु अधिक सक्रिय रहते हैं। इसलिए जन्म के पहले घंटे में मां का पहला गाढ़ा पीला दूध शिशु को जरूर पिलाना चाहिए। जिसकी सलाह चिकित्सक भी देते हैं। ताकि, शिशु सक्रिय व प्राकृतिक रूप से स्तनपान करने में सक्षम बन सके। साथ ही 6 माह तक केवल स्तनपान भी जरुरी होता है। इस दौरान स्तनपान के आलावा बाहर से कुछ भी नहीं देना चाहिए। वहीं, इस बात का ध्यान रखना जरूरी होता है कि ऊपर से पानी भी न दिया जाए।
संक्रमण काल के दौरान भी धातृ माताओं को दी गयी जानकारी :
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. केएन सिन्हा ने बताया, मां के दूध की अहमियत सर्वविदित है। जन्म के शुरूआती 1 घंटे के भीतर शिशुओं के लिए स्तनपान अमृत समान होता है। सामान्य एवं सिजेरियन प्रसव दोनों स्थितियों में 1 घंटे के भीतर ही स्तनपान कराने की सलाह दी जाती है। इससे शिशु के रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। जिससे बच्चे का निमोनिया एवं डायरिया जैसे गंभीर रोगों में भी बचाव होता है। उन्होंने बताया, संक्रमण काल के दौरान भी गृह भ्रमण के दौरान आशा कार्यकर्ताओं ने गर्भवतियों के साथ साथ धातृ महिलाओं को इसकी जानकारी दी। धातृ माताओं को पानी, डिब्बा बंद दूध या फिर बोतल का प्रयोग बिल्कुल न करने की सलाह दी जाती रही।
शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता का होता है विकास :
डॉ. केएन सिन्हा ने बताया, शुरूआती समय में एक चम्मच से अधिक दूध नहीं बनता है। यह दूध गाढ़ा एवं पीला होता है। जिसे क्लोसट्रूम कहा जाता है। इसके सेवन करने से शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। लेकिन अभी भी लोगों में इसे लेकर भ्रांतियां है। कुछ लोग इसे गंदा या बेकार दूध समझकर शिशु को नहीं देने की सलाह देते हैं। दूसरी तरफ़ शुरूआती समय में कम दूध बनने के कारण कुछ लोग यह भी मान लेते हैं कि मां का दूध नहीं बन रहा है। यह मानकर बच्चे को बाहर का दूध पिलाना शुरू कर देते हैं। जबकि यह केवल सामुदायिक भ्रांति है। बच्चे के लिए यही गाढ़ा पीला दूध जरुरी होता है एवं मां का शुरूआती समय में कम दूध बनना भी एक प्राकृतिक प्रक्रिया ही है। जिनसे लोगों को दूर रहना चाहिए।

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

- Sponsored -

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

- Sponsored -

- Sponsored -

Comments
Loading...

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More