इंडिया सिटी लाइव 3 फरवरी : बिहार में हॉप शूट्स का उत्पादन सुर्खियों में आया है. यह सब्ज़ी हॉप प्रजाति के पौधों की पत्तियां हैं. इसके फूलों को हॉप्स के नाम से जाना जाता है. सबसे पहले यानी हज़ार साल पहले इन्हें बीयर में कड़वाहट लाने के लिए इस्तेमाल किया गया था. इसके बाद भोजन में फ्लेवर के तौर पर इसका चलन बढ़ा और फिर चिकित्सा में इसका उपयोग हुआ. बाद में जब इसका कमर्शियल उत्पादन हुआ, तब इसे पकाकर खाने का चलन भी शुरू हुआ.औरंगाबाद ज़िले के किसान अमरेश सिंह ने बताया कि स्पेशल डिमांड पर ही हॉप शूट्स को खरीदा बेचा जाता है. उन्होंने ट्रायल के तौर पर हॉप शूट्स का उत्पादन किया और सिंह बताते हैं कि अब 60 फीसदी से ज़्यादा उत्पादन सफल रहा. दूसरी फसलों की तुलना में किसानों को इससे 10 गुना ज़्यादा फायदा होने तक की संभावना की बात भी अमरेश कहते हैं.
यह जानकर आप दंग रह सकते हैं. हॉप शूट्स का वैज्ञानिक नाम हमुलस लपुलस है, जिसका इंटरनेशनल मार्केट काफी बड़ा है. 1000 यूरो से भी ज़्यादा तक की कीमत पर इसकी बिक्री होती है यानी रुपयों के हिसाब से कम से कम 87 हज़ार या करीब एक लाख रुपये किलो तक हॉप शूट्स की कीमत आंकी जाती है. छह साल पहले भी इंटरनेशनल मार्केट में यह सब्ज़ी 1000 पाउंड प्रति किलो बिक रही थी.
8वीं सदी में जर्मनी में सबसे पहले हॉप्स के उत्पादन के प्रमाण मिलते हैं. इसके बाद इंग्लैंड सहित यूरोप के कई देशों में यह फसल मशहूर हुई. इंग्लैंड में 16वीं सदी में इसे बैन तक किया गया तो जर्मनी में इसे टैक्समुक्त किया गया क्योंकि राजनीति और धर्म की यह पहली पसंद थी. इंग्लैंड में आयात किए जाने वाले हॉप्स को बैन करने के लिए एक कानून तक बनाया गया था तो 1557 में कवि थॉमस टसर ने बीयर में हॉप्स के इस्तेमाल से प्रभावित होकर कविता में इसका गुणगान भी किया था.